Headline
चार साल के मासूम का मिला आधा अधजला शव, मुकदमा दर्ज
चार साल के मासूम का मिला आधा अधजला शव, मुकदमा दर्ज
निकाय चुनाव की तिथि का किया ऐलान, जानिए कब होगी वोटिंग
निकाय चुनाव की तिथि का किया ऐलान, जानिए कब होगी वोटिंग
नगर निगम, पालिका व पंचायत के आरक्षण की फाइनल सूची जारी
नगर निगम, पालिका व पंचायत के आरक्षण की फाइनल सूची जारी
चकराता में हुई सीजन की दूसरी बर्फबारी, पर्यटक स्थलों पर उमड़े लोग, व्यवसायियों के खिले चेहरे 
चकराता में हुई सीजन की दूसरी बर्फबारी, पर्यटक स्थलों पर उमड़े लोग, व्यवसायियों के खिले चेहरे 
सर्दियों में भूलकर भी बंद न करें फ्रिज, वरना हो सकता है भारी नुकसान, ऐसे करें इस्तेमाल
सर्दियों में भूलकर भी बंद न करें फ्रिज, वरना हो सकता है भारी नुकसान, ऐसे करें इस्तेमाल
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘रोजगार मेला’ के तहत 71,000 युवाओं को सौंपे नियुक्ति पत्र
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘रोजगार मेला’ के तहत 71,000 युवाओं को सौंपे नियुक्ति पत्र
अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे ने सीएम धामी से की मुलाकात 
अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे ने सीएम धामी से की मुलाकात 
कुवैत ने पीएम मोदी को अपने सबसे बड़े सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से किया सम्मानित 
कुवैत ने पीएम मोदी को अपने सबसे बड़े सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से किया सम्मानित 
मुख्यमंत्री धामी ने 188.07 करोड़ की 74 योजनाओं का किया लोकर्पण और शिलान्यास
मुख्यमंत्री धामी ने 188.07 करोड़ की 74 योजनाओं का किया लोकर्पण और शिलान्यास

नीतीश बचेंगे या खत्म होंगे?

नीतीश बचेंगे या खत्म होंगे?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने अस्तित्व का संकट है। वे राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिल कर सरकार चला रहे हैं लेकिन राजद की ओर से उनको कमजोर करने की कोशिश हो रही है। वे भाजपा के साथ जाना चाहते हैं लेकिन भाजपा को भी पूरी तरह से सरेंडर चाहिए। जानकार सूत्रों का कहना है कि राजद और भाजपा दोनों बिहार की राजनीति से नीतीश फैक्टर को खत्म करना चाहते हैं। असल में बिहार की राजनीति में पिछले करीब तीन दशक से नीतीश कुमार एक धुरी बने हुए हैं और वह भी बिना किसी मजबूत जातीय आधार के। उन्होंने 1994 में समता पार्टी बनाई थी और तब से वे बिहार के राजनीति के सबसे अहम किरदार हैं।

लेकिन अब दोनों बड़ी पार्टियां- राजद और भाजपा उनको खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी ओर से ऐलान किया है कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के चेहरे पर लड़ा जाएगा। लेकिन बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद चाहते हैं कि नीतीश अभी तुरंत तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाएं। यह भी कहा जा रहा है कि पिछले साल अगस्त में जब नीतीश ने भाजपा को छोड़ा था तब लालू प्रसाद के साथ उनका समझौता हुआ था कि वे एक साल में तेजस्वी को गद्दी सौंप देंगे। सो, लालू की ओर से नीतीश पर भारी दबाव है। लालू परिवार के कई सदस्य राज्य की सत्ता का केंद्र बने हैं, इससे भी नीतीश को समस्या है। इसके अलावा लालू की पार्टी के विधायक और मंत्री जैसे सुनील सिंह, चंद्रशेखर, सुधाकर सिंह आदि लगातार नीतीश के खिलाफ बयान दे रहे हैं। लालू प्रसाद को लग रहा है कि अगर तेजस्वी अभी सीएम नहीं बने तो बेटे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखने की उनकी हसरत पूरी नहीं होगी और अगर नीतीश फैक्टर बने रहे तो मंडल, समाजवादी और पिछड़ों की राजनीति पूरी तरह से राजद के हाथ में नहीं आएगी।

दूसरी ओर भाजपा ने नीतीश फैक्टर को खत्म करने की कोशिश 2020 के विधानसभा चुनाव में भी की थी। तब वे भाजपा के साथ ही मिल कर चुनाव लड़ रहे थे लेकिन भाजपा की शह पर चिराग पासवान ने नीतीश की पार्टी के हर उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतार दिया था। सोचें, तब नीतीश राजद-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ तो लड़ ही रहे थे लोक जनशक्ति पार्टी के भी खिलाफ लड़ रहे थे, जिसके पीछे भाजपा की ताकत थी। भाजपा के अनेक बड़े नेता लोक जनशक्ति पार्टी की टिकट से चुनाव लड़े थे। फिर भी नीतीश 43 सीट जीत कर आए। लेकिन वे काफी कमजोर हुए और राजद व भाजपा के बाद तीसरे नंबर की पार्टी रह गए।

तभी से वे भाजपा से बदला लेना चाहते हैं तो राजद को भी गद्दी नहीं देना चाहते हैं। इस बात को राजद और भाजपा दोनों ने समझा हुआ है। इसलिए कोई मौका नहीं देना चाहता है। भाजपा चाहती है कि वे मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ें, भाजपा का सीएम बनाएं तभी समझौता होगा। नीतीश सीएम रहते हुए तालमेल चाहते हैं और साथ ही लोकसभा के साथ ही विधानसभा का चुनाव कराना चाहते हैं। वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि बाद में भाजपा फिर कोई चिराग पासवान टाइप का दांव न चले तो दूसरी ओर भाजपा चाहती है कि उनकी ऐसी हालत कर दी जाए कि वे फिर गठबंधन बदल नहीं कर सकें। सो, उनके एक तरफ कुआं और दूसरी ओर खाई है। दोनों में से कोई उनको सीएम नहीं रखना चाहता है। ऊपर से उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं है। तभी यह देखना दिलचस्प है कि वे हर बार की तरह इस बार भी संकट से निकलते हैं या बिहार की राजनीति से नीतीश अध्याय की समापति होती है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top