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मुआवजे तक में मुश्किल

मुआवजे तक में मुश्किल

यह भारत में मानवीय गरिमा के प्रति बेरुखी का प्रमाण है कि देश में आज भी हजारों लोग सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने के लिए उनमें उतरने के लिए मजबूर हैं, जबकि 2013 में ही इस चलन पर कानूनन प्रतिबंध लगा दिया गया था। भारत में आज इंसान के हाथों सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई बड़ी समस्या बनी हुई है। असल में यह देश के चेहरे पर एक बदनुमा दाग भी है। यह भारत में मानवीय गरिमा के अनादर और उसके प्रति बेरुखी का प्रमाण है कि देश में आज भी हजारों लोग सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने के लिए उनमें उतरने के लिए मजबूर हैं, जबकि साल 2013 में ही इस चलन पर कानूनन प्रतिबंध लगा दिया गया था।

जाहिर है, वह पाबंदी सिर्फ कागज पर सिमट कर रह गई है। संसद के हाल में खत्म हुए सत्र में सरकार ने बताया कि इस साल 20 नवंबर तक सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 49 मौतें दर्ज की गईं। अब ताजा खबर यह है कि सीवर में उतरने के कारण जो मजदूर मर जाते हैं, उन्हें मुआवजा देने में अपेक्षित तत्परता नहीं दिखाई जाती। इसी साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने सीवर की सफाई के दौरान होने वाली मौतों के बारे में एक अहम आदेश जारी किया था।

कोर्ट ने कहा था कि जो लोग सीवर की सफाई के दौरान मारे जाते हैं, उनके परिवार को सरकार को 30 लाख रुपए की सहायता देनी होगी। सीवर की सफाई के दौरान स्थायी विकलांगता के शिकार होने वाले मजदूरों को न्यूनतम 20 लाख रुपए और किसी अन्य विकलांगता से ग्रस्त कर्मियों को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश न्यायालय ने दिया। इसके पहले 2014 में भी सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया था, जिसमें मृतकों को दस लाख रुपए की सहायता देने को कहा गया था।

अब सामने आया है कि 1993 से इस साल 31 मार्च तक देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सीवर में होने वाली मौतों की 1,081 घटनाओं में से 925 मामलों में ही मुआवजे का भुगतान किया गया है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने दिया है। इसके मुताबिक 115 मामलों में अभी भी मुआवजा दिया जाना बाकी है। जबकि 41 मामलों को राज्यों सरकारों ने बंद कर दिया है, क्योंकि उनके मुताबिक मृतकों के कानूनी वारिस का पता नहीं लगाया जा सका।

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